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(आभार राजस्थान पत्रिका)

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प्रेरक प्रसंग

श्री लालबहादुर शास्त्री नामबरी से क्यूं दूर भागता हा?

एक बार री बात है के भारत रा भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री लालबहादुर शास्त्री रे पास एक आदमी आयो और एकारक बेने एक सवाल करियो। "शास्त्रीजी आप नामबरी से इत्ती दूर क्यों भागो हो?" श्री लालबहादूर शास्त्री जी ई सवाल रो जवाब दियो बो हमेशा याद रखबा लायक है; और बो घणो हो प्रेरणा देबा बालो है।

शास्त्री जी बोल्या- "देखो भाई, बात ई प्रकार री है के एक बार में लाला लाजपत राय जी रे कने बैठ्यो हो। वे म्हनै कह्यो 'अरे लालबहादुर तने मालूम हो तो के ताजमहल ने बनाबा में दो प्रकार का भाटा रो प्रयोग कर्यो गयो हो। एक घणो चौखी भाटी है संगमरम को जीनै आपो मीनार, गुम्बद अर मीनां रे काम में ल्यावां। बीने देखबा रे खातर सारी दुनिया भर सूं लोग बाग आवे अर बीकी घणी तारीफ करे। दूसरो साधारण भाटो है जीको उपयोग भी ताजमहल के बनाबां में ही कर्यो गयो है। बे भाटा है नींव रा भाटा जीनैं नींव रा पत्थर कहवे। बे भाटा पर ही औ इत्तो बड़ो ताजमहल रख्यो गयो है। ऐ नींव रा पत्थर कहवे। बे भाटो पर हो ही औ इत्वी बड़ो ताजमहल रख्यो गयो है। वे नींव रा पत्थर री विशेषता है क सारा ताजमहल को बोजो बे अपणो ऊपर ले रख्यो है।' वे नींव रा पत्थरां ने कोई देख नीं सके। ज आ बात है तो बै की कोई क्यान तारीफ करे। यान ही प्रिय लालबहादुर, आपां रे कार्यकर्ताओं ने भी दूसरा प्रकार रा भाटा री जवान अर्थात् नींव रा पत्थर री जान होणूं चाहवै। कार्तकर्ता ऐसा होणा चावै के जैनें अपणी नामबरी, प्रसिद्धी, मान री परवाह नीं हवै अर जी देशा री उन्नती री खातर अर देश री स्वाधीनता रे खातर अर हर प्रकार से देश री तरक्की रे खातर काम में ही लग्या रहवे।' लाल लजपत राय जी रा ऐ शब्द म्हारा हृदय में अंकित हो गया। माफ करे भाया, मनै तो नींव रो पत्थर बणबों ही ज्यादा पसन्द है।"

 

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